हमारे गाँव के एक व्यक्ति बताते थे कि एक बार वे खड़खड़ दुपहरिया में अपने भैंस को नहलाने के लिए पोखरे में लेकर गए थे। भैंस डुबाह भर पानी में चली गई और वे भी। अचानक एक बुड़ुआ ने उन पर हमला कर दिया और उन्हें कीचड़ में धाँसने की कोशिश करने लगा। बुड़ुआ के साथ उनकी खूब लड़ाई हुई अंत में वे महानुभाव बुड़ुआ के चंगुल से निकलकर भैंस के पीठ पर चढ़ गए। बुड़ुआ वहाँ भी उनका पीछा करना जारी रखा, अंततः पता नहीं भैंस को क्या आभास हुआ कि वह तेजी से पोखरे से बाहर निकलने के लिए भागी। ऐसा लगता था कि बुड़ुआ ने भैंस के पैरों को जकड़ लिया है। कैसे भी करके भैंस पानी के बाहर आई और उस महानुभाव की जान बची। एस घटना के लगभग महीनों तक वह भैंस कभी भी किसी तालाब आदि में जाने की हिम्मत नहीं जुता पाती थी।
आइए हम आपको बुड़ुआ की एक घटना सुना देते हैं। स्वर्गीय (स्वर्गीय कहना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है क्योंकि अगर रमेसर स्वर्गीय हो गए तो फिर बुड़ुआ बनकर लोगों को सता क्यों रहे हैं- खैर भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।) रमेसर हमारे गाँव के ही रहने वाले थे और जब उन्होंने अपने इस क्षणभंगुर शरीर का त्याग किया उस समय उनकी उम्र लगभग 9-10 वर्ष रही होगी। वे बहुत ही कर्मठी लड़के थे। पढ़ने में तो बहुत कम रूचि रखते थे पर घर के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। चउओं (मवेशियों) को चारा देने से लेकर उनको चराने, नहलाने, गोबर-गोहथारि आदि करने का काम वे बखूबी किया करते थे। वे खेती-किसानी में भी अपने घरवालों का हाथ बँटाते थे। उनका घर एक बड़े पोखरे के किनारे था। यह पोखरा गरमी में भी सूखता नहीं था और जब भी रमेसर को मौका मिलता इस पोखरे में डुबकी भी लगा आते। दरवाजे पर पोखरा होने का फायदा रमेसर ने छोटी ही उम्र में उठा लिया था और एक कुशल तैराक बन गए थे। आज गाँववालों ने इस पोखरे को भरकर घर-खलिहान आदि बना लिया है। इस पोखरे से गाँव को बहुत ही फायदा था। गर्मी में लोग खूब अपने मवेशियों को डूबकी लगवाते थे और बच्चों का झुंड भी खूब तैराकी करता था। यह पोखरा गाँव के जीवन का एक अंग था। वैसे भी आजकल तो कहीं भी ये पोखरे, तालाब आदि नजर नहीं आ रहे हैं, या बहुत कम नजर आ रहे हैं क्योंकि लोगों ने इन्हें भरना शुरू कर दिया है। खैर जो अपने हाथ में नहीं उसका रोना रोना ठीक नहीं, आइए आपको सीधे कहानी से परिचित करवाता हूँ।
एकबार की बात है की असह्य गरमी पड़ रही थी और सूर्यदेव अपने असली रूप में तप रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे पूरी धरती को तपाकर लाल कर देंगे। ऐसे दिन में खर-खर दुपहरिया (ठीक दोपहर) का समय था और रमेसर नाँद में सानी-पानी करने के बाद भैंस को खूँटे से खोलकर नाँद पर बाँधने के लिए आगे बढ़े। भैंस भी अत्यधिक गरमी से परेशान थी। भैंस का पगहा खोलते समय रमेसर ने बचपने (बच्चा तो थे ही) में भैंस का पगहा अपने हाथ में लपेट लिए। (इसको बचपना इसलिए कह रहा हूँ कि लोग किसी भी मवेशी का पगहा हाथ में लपेटकर नहीं रखते हैं क्योंकि अगर वह मवेशी किसी कारणबस भागना शुरु कर दिया तो उस व्यक्ति के जान पर बन आती है और वह भी उसके साथ घसीटते हुए खींचा चला जाता है क्योंकि पगहा हाथ में कस जाता है और हड़बड़ी में उसमें से हाथ निकालना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।) जब रमेसर भैंस को लेकर नाँद की तरफ बढ़े तभी गरमी से बेहाल भैंस पोखरे की ओर भागी। रमेसर भैंस के अचानक पोखरे की ओर भागने से संभल नहीं सके और वे भी उसके साथ तेजी में खींचे चले गए। भैंस पोखरे के बीचोंबीच में पहुँचकर लगी खूब बोह (डूबने) लेने। चूँकि पोखरे के बीचोंबीच में रमेसर के तीन पोरसा (उनकी लंबाई के तिगुना) पानी था और बार-बार भैंस के बोह लेने से उन्हें साँस लेने में परेशानी होने लगी और वे उसी में डूब गए। हाथ बँधा और घबराए हुए होने की वजह से उनका तैरना भी काम नहीं आया।
2-3 घंटे तक भैंस पानी में बोह लेती रही और यह अभाग्य ही कहा जाएगा कि उस समय किसी और का ध्यान उस पोखरे की ओर नहीं गया। उनके घरवाले भी निश्चिंत थे क्योंकि ऐसी घटना का किसी को अंदेशा नहीं था। 2-3 घंटे के बाद जब भैंस को गरमी से पूरी तरह से राहत मिल गई तो वह रमेसर की लाश को खिंचते हुए पोखरे से बाहर आने लगी। जब भैंस लगभग पोखरे के किनारे पहुँच गई तो किसी व्यक्ति का ध्यान भैंस की ओर गया और वह चिल्लाना शुरु किया। उस व्यक्ति की चिल्लाहट सुनकर आस-पास के बहुत सारे लोग जमा हो गए। पर यह जानकर वहाँ शोक पसर गया कि कर्मठी रमेसर अब नहीं रहा। भैंस ने अपनी गरमी शांत करने के लिए एक निर्बोध बालक को मौत के मुँह में भेज दिया था।
इस घटना को घटे जब लगभग 5-6 साल बीत गए तो लोगों को उस पोखरे में बुड़ुवे (भूत) का एहसास होने लगा। गाँव में यह बात तेजी से फैल गई कि अब रमेसर जवान हो गया है और लोगों पर हमला भी करने लगा है। एक दिन गोन्हुआ सुबह-सुबह मछरी मारने के लिए तालाब से जलकुंभी निकाल रहा था तभी उसके पैरों में सेवार या काई जैसी कोई फिसलन वाली वस्तु लगी नजर आई, वह उस सेवार या काई जैसी वस्तु को जितना हाथ से नोचकर फेंकने की कोशिश करता, वह उतना ही उसके शरीर पर फैलती जा रही थी तथा गोन्हुआ को यह भी आभास हो रहा था कि पता नहीं क्यों, वह धीरे-धीरे पानी में खींचा चला जा रहा है। अचानक उसे लगे कि हो न हो कहीं यह रमेसर बुड़ुआ तो नहीं। फिर उसका लकार खुला और वह तेज-तेज चिल्लाने लगा। उसकी चिल्लाहट सुनकर कुछ लोग दौड़े हुए आए और उसे पानी से बाहर निकाला। गोन्हुआ पूरी तरह से डरा हुआ था और बता रहा था कि किस प्रकार न चाहते हुए भी वह पानी में खींचा चला जा रहा था। गोन्हुआ के अलावा भी कई लोगों ने उस बुड़ुवे को देखा था। एक बार की बात है की खमेसरी काकी, उस पोखरे के किनारे की बँसवारी में अपनी गाय के लिए बाँस की पतई तोड़ रही थीं तभी उन्हें तालाब में किनारे कुछ अजीब चीज तेजी से नीचे-ऊपर होते दिखाई दी, उनको पक्का यकीन हो गया कि यह रमेसर बुड़ुआ है क्योंकि वह अजीब चीज जब ऊपर उछलती तो हाथ के इशारे से उन्हें उसके पास आने का इशारा करती, पर खमेसरी काकी को पता था कि बुड़ुआ का बल केवल पानी में ही काम करता है, यहाँ सूखी जमीन पर वह उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, अस्तु रमेसरी काकी उस बुड़ुआ पर ध्यान दिए बिना बाँस की पत्तई तोड़ने में लगी रहीं। आज वह पोखरा समतल हो गया है, उस पर घर-खलिहान आदि बन गए हैं पर जब तक उसमें पानी था तब तक रमेसर उस पोखरे में अकेले नहानेवाले कई लोगों पर हमला कर चुका था। एक बार तो वह एक बड़े बलवान आदमी को भी खींचते हुए पानी के अंदर लेकर चला गया था, अब डुबाने वाला ही था पर संयोग से किसी महिला की नजर उस पर पड़ गई और उसकी चिल्लाहट सुनकर कुछ लोगों ने उस व्यक्ति की जान बचाई।
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